रविवार, 21 अगस्त 2011

pravasi bhartiya ----poem

प्रवासी भारतीय
जे जहाज़ को पंछी नइयां
मोटर बंगला छोड़ लौट के कौन चराबें गैया
जे पश्चिम की चकाचौध कछु एसी मन खों भाई
डैनन पे उड़ाए कें लें गई भारत की तरुणाई
काय बिराने देस लग रए तोखों सरग समैया
छूट गए सब नाते रिश्ते तड़पत रह गयो भैया
पीर मताई की नई जानी झटको भिगो अचरा
बैना के नैना से झर-झर बहत रह गयो कजरा
अपनी सुघर मडैया काहे तोखों रास न आई
हाय हरी री हवा गाँव की काये नहीं सुहाई
देस पराए जाखें गढ़ रए हो सोने पे सोना
जा माटी पे जनमे तासों गढों न एक खिलोना
खबर लौटने की करके तुम लौटे नइ हरज़ाई
घूरन के दिन कबै फेरिहें मेरे राम गोसाईं
गए रहे तो कछु ऐसों तुम करतब उतें दिखाइयो
भारत के झंडे बिदेस में गाड़- गाड़ खे अइयो !!!!!!!!!!!
शिवनारायण जौहरी विमल
एच. आई जी. १३७/ ई ७
अरेरा कालोनी
भोपाल (भारत)

कोई टिप्पणी नहीं: