रविवार, 21 अगस्त 2011

gazal

ग़ज़ल
कोई बंधनों के घर आ कर उतर गया
हम हैं कि उसके जन्म की खुशियाँ मना रहे
चाबी तो साथ लाए थे दुनिया की हम मगर
इस ज़िंदगी का ताला तो हम से खुला नहीं
ताले से जूझ--जूझ कर गुम होश हो गए
जब होश में आए तो ताला ही नहीं था
दुनिया में जिस खुशी की हमें जूस्तजू रही
वह जब मिली तो जोश ने इन्कार कर दिया
जब जिंदगी को प्यास का साकी बना दिया
तो फिर सुकून किस के लिए ढूँढते हैं हम
कोई तो झुका हुआ था अपने मज़ार पर
और हम उसी को ज़िंदगी कहते चले गए
दर-दर की ठोकरें मिलीं बेआबरू थे हम
तेरी निगाह बदली तो सब कुछ बदल गया
पिंजरा ही रास आ गया रहने के बाद यूँ
की आज़ाद हो रहे हैं तो रो रहे हैं हम !!!!!!!!!!!!!!!
शिवनारायण जौहरी विमल

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