कुर्सी
हरा कर हार को जो चढ़ गया पर्वत शिखर तक
मिला करती उसी को मान की , सम्मान की कुर्सी
हज़ारों टूटते उजड़े अधूरे ख्वाब पूरे कर दिए जिसने
बहुत छोटी पड़ गई उसके लिए इंसान की कुर्सी
जो जिया था जो मरा इंसान की बहतरी के खातिर
उसी के लिए हर दिल में लगी भगवान की कुर्सी
अच्छे बुरे इंसान को पहचानने की योग्यता है तो
उसका करेगी स्वागत इंसाफ़ के दीवान की कुर्सी
गर्त में डाल दे ले जाए उँचे बादलों तक उड़ाकर
नाच नाचवाती खुले बाज़ार यह बेज़ान की कुर्सी !!!!!!
shiv Narayan johri vimal
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