आएगा-सबेरा
उम्मीद ज़रा सब्र का दामन पकड़ के देख
कुछ ही लम्हों में चमक कर आएगा सबेरा !
उसने कहा था पहाड़ी पे चढ़ कर नज़र उठा
बढते कदम , को चूमता आएगा सबेरा !
जो जग रहे थे उनको क्या क्या नहीं दिया
सोते को रुक के क्यों मनाएगा सबेरा |
इस आसमा से मिंन्नतें कब तक करोगे तुम
धरती से ही उभर कर आएगा सबेरा |
गिर जातीं है पतझड़ में सूखी पत्तियाँ
ज़वा कोपलो को चूमता आएगा सबेरा |
गर रास्ता सही हो और ज़मीर साफ हो
हर रोज़ नई रोशनी लाएगा सबेरा |
अंधा सफ़र है दुनिया के इस मीना बाज़ार का
तंद्रा के टूटने पे हो जाएगा सबेरा ||||||||
श्री शिव नारायण जौहरी `विमल`
उम्मीद ज़रा सब्र का दामन पकड़ के देख
कुछ ही लम्हों में चमक कर आएगा सबेरा !
उसने कहा था पहाड़ी पे चढ़ कर नज़र उठा
बढते कदम , को चूमता आएगा सबेरा !
जो जग रहे थे उनको क्या क्या नहीं दिया
सोते को रुक के क्यों मनाएगा सबेरा |
इस आसमा से मिंन्नतें कब तक करोगे तुम
धरती से ही उभर कर आएगा सबेरा |
गिर जातीं है पतझड़ में सूखी पत्तियाँ
ज़वा कोपलो को चूमता आएगा सबेरा |
गर रास्ता सही हो और ज़मीर साफ हो
हर रोज़ नई रोशनी लाएगा सबेरा |
अंधा सफ़र है दुनिया के इस मीना बाज़ार का
तंद्रा के टूटने पे हो जाएगा सबेरा ||||||||
श्री शिव नारायण जौहरी `विमल`
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें