रविवार, 24 फ़रवरी 2013
Bund kavita
बूँद
अपरिमित शक्ति और विस्तार का
मात्र कुछ आभास देने के लिए
दूत अपना बनाकर
एक बूँद को प्रति रूप दे
भेजा धरा पर !
नहीं थे हाथ उसके पैर उसके
न लंबाई न चौड़ाई
न है कोई आकार उसका
देखा जा नहीं सकता
किसी भी यंत्र से जिसको
छू नहीं सकता जिसे कोई
उस बिंदू के अस्तित्व को
सार्वभौमिक मान्यता
आस्था विश्वास ने दी थी !
बूँद ने जन्म रेखा को दिया
जो किसी को दिख नहीं सकती
क्यूंकी चौड़ाई दी ही नहीं उसने !
बूँद की उस अद्रष्य उंगली ने
बुन कर रख दिया ज्ञान
और विज्ञान का संसार सारा
गणित भूगोल का विस्तार
कला और संगीत प्यारा !
हरेक कन में व्याप्त होकर
रचना पर नियंत्रण
कर रहा है वह !!!
शिवनारायण जौहरी 'विमल'
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