वृंदावन
चंदन के जंगल में जैसे
रिमझिम बरस रहा हो सावन !
फूल फूल पर तितली नाचे
जूही सजाए कोई उपवन !
पवन गंध ऐसी फैला दे
डूब जाएँ तेरे मन !
घर घर की दुर्गंध बुहारे
खुशबू से भर जाए आँगन !
बरसे ऐसी सुधा चंद्रिका
गोरे हो जायें काले मन !
पीर बाँट ले हरेक पड़ोसी
घर मन बन जायें वृंदावन !
खुले रहें खिड़की दरवाज़े
नव विचार करते हो नर्तन !
गंगा की निर्मल धारा सा
बहता रहे सभी का जीवन !
नाच उठे धरती का कन कन
कुछ ऐसा छा जाए पागलपन
घर मन बन जाए वृंदावन !!!!!!!!!
कवि--शिवनारायण जौहरी विमल
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