गंधर्व विवाह
समय के पहाड़ से खोद कर
चलो तराश लायें कुछ लम्हे
चैन के सुकून के
पर यह क्या
तराशे हुए टुकड़े भी गमगीन हैं
लगता है गहरे पैठ गये हैं
असंतोष और निराशा !
पिरामिड और सददामों के देशो से
कितना अलग है
हमारा देश
हमारा हथियार है सत्याग्रह !
हमने तो सब्जीमंडी मैं
सहज भाव से केवल मंहगाई
को ही तो नोचा था पर वे तो
लगे जोड़ने उससे
भ्रष्टाचार की पूतना से
जोड़ बाकी करते करते
वे तक नहीं रहे थे
जैसे उनका गंधर्व विवाह
उस पूतना से हो गया था !
भेड बकरियों के मालिक
घास पत्ती डालते रहो
और दूध पीते रहो
झगड़े से क्या लाभ
हमारे मुँह पर रात भर
कुत्ता मूतता रहा
पर किसी ने
भगाया तक नहीं !
कैसी बन गई है
हमारी मानसिकता ?
अब जब एक के बाद एक
दस्तक आने लगी है
आमरण अनशन की
तब हम अंगड़ाई लेने लगे है !
एक बुड्दा बोला
कांप गये वे लोग
सूखे पत्ते की तरह
पर गंधर्व विवाह हो
या सबके सामने का
कोई आसानी से
छोड़ छुट्टी नहीं देता !
भोंकने वाले कुत्ते
छोड़े तो थे
पर कुछ हुआ नहीं !
लगता है जनता का साहस
सड़क पर आ गया है !
भ्रष्टाचार के यह फटते हुए पेट
यह मुह फड़ते लौकर
\ यह देशद्रोह का
घिनौना चहरा
यह बेनकाव भूत
माँगता है दंड फाँसी का !
इससे पहिले की मिट्टी
सूख कर पत्तथर हो जाए
गीली मिट्टी से नई मूर्तियाँ गद्दो
नई संरचना के लिए !!!!!!!
शिवनारायण जौहरी विमल
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