क्या करेगा पार लगाने वाला
मेरे मन खोट घने ।
क्या करेगा नाव चलाने वाला
पल-पल काठ गुने।
जड़ तरू चिक्कन पात लुनाई
सौरभ रंग रस मद तरूणाई
पौन कहे अनहद की गाथा
तरू सुन शीश धुने।
रवि रथ से आलोक बरसता
पल-पल जीवन ज्योति सरसता
मन उलूक तरू कोटर बैठा
आधी रात गने।
मधु पर बैठी है मन माखी
पद पंखों की सुधि नहिं राखी
पवन कहे चल दूर नगरिया
पंख अरू पैर सने।
सूखा तरू नदिया के तीरे
डूब रहा है धीरे- धीरे
पर न हरी पाती आती है
जल चाहें ज्वार बने।।।.
शिवनारायण जौहरी विमल
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