शनिवार, 20 अगस्त 2011

patthar ke dev ---kavita

पत्‍थर के देव
तुम पत्थर के देव
और मैं केवल पत्थर
तुम में मुझ में साम्य यही है
तुम भी पत्थर मैं भी पत्थर
मैं पत्थर से धूल बन
गया हूँ पिस पिस कर
तुम पत्थर से
देव बन गये हो
घिस घिस कर !
मैं जब से पिस गया
तभी से अजड़ हो गया
मानव के तलवे सहलाता
खेत और खलिहान सज़ाता
रंगीन सुवासित कर
धरती को स्वर्ग बनाता !
तुम जब से घिस गये
देव बनकर मंदिर में बंद
जगत की सच्चाई से दूर
किसी पंडे की दुकान
सज़ाए बैठे
मुस्का मुस्का कर
श्रध्दा को छलता रहते हो
भोला मानव तुमको
आँसू से नहला नहला कर
आँखें खो बैठा है पर
तुम पिघल नहीं पाते
जड़ता की मूर्ति बने हो
उस दिन सचमुच
तुम पूजे जाओगे जिस दिन
आडंबर के खंभ फाड़ कर
बाहर आ कर आर्त जनों
के कष्ट हरोगे
घर घर बसे सुदामा
के तुम चरण पखारोगे
नयनों से नीर बहा कर
गले लगा कर !!!
शिवनारायण जौहरी विमल

कोई टिप्पणी नहीं: