शुक्रवार, 23 जुलाई 2010

जिजीविषा-------पाप शाप तुम से हारे

पाप शाप तुम से हारे
पाप शाप तुम से हारे
उनके भव बंध निवारे
शरणागत आए जो भी
सारे उबारे ।
हे। माधव कृष्ण मुरारे
हम भी खङ़े हैं व्दारे
दोनों ही हाथ पसारे
मेरी बेर कैसे हारे
शरणागत आए जो भी
सारे उबारे।
काम जो दिए थे तुमने
कुछ तो बनाए हमने
और कुछ बिगारे
तुम्हें क्या बताएँ मोहन
माया में उरझे सारे
क्षमा दया तेरे व्दारे
शरणागत आए जो भी
सारे उबारे।
सांध्य के धुंधलके में
खो गई लकीरें सारी
खो गए किनारे सारे
अंधड ने नोच गिराए
ङार पात वंदनवारे
अब तो सहारे तेरे
नैया के खेवनहारे
शरणागत आए जो भी
सारे उबारे।
कहाँ जाएँ रोएँ भटके
साँझ से सकारे तेरे
चरण ही पखारे मैँने
बिगडी बनावन हारे
शरणागत आए जो भी
सारे उबारे।।।।।।
शिवनारायण जौहरी विमल

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