ग़ज़ल ४
पिछले जनम की बात कोई जानता नहीं
किस कर्म का है अंजाम ग़रीबी
अपने गुनाह छिपाने की गरज़् से हमने
लिख दी है आसमा के नाम ग़रीबी
भौतिक सुखों की कामना करते हैं हम सभी
दे भूखों को संतोष का पैगाम ग़रीबी
जिस प्यास ने भेजा है आदमी को चाँद पर
उससे परहेज़ और है अदनाम ग़रीबी
भौतिक जगत में रहकर के उन्नति से बैर
इस सोच का ही है परिणाम ग़रीबी
कसम खाई है हर बार हम हटाएँगे ग़रीबी
जहाँ थी वहीं खड़ी है बेनाम ग़रीबी
जब जात और जनम दोनो ग़रीब हों
खूटे से बँधी गाय उपनाम ग़रीबी
प्यास और विश्वास के यान पर चढकर
लिख लेगी सारा स्वर्ग अपने नाम ग़रीबी!!!!!!
श्री शिव नारायण जौहरी 'विमल'
पिछले जनम की बात कोई जानता नहीं
किस कर्म का है अंजाम ग़रीबी
अपने गुनाह छिपाने की गरज़् से हमने
लिख दी है आसमा के नाम ग़रीबी
भौतिक सुखों की कामना करते हैं हम सभी
दे भूखों को संतोष का पैगाम ग़रीबी
जिस प्यास ने भेजा है आदमी को चाँद पर
उससे परहेज़ और है अदनाम ग़रीबी
भौतिक जगत में रहकर के उन्नति से बैर
इस सोच का ही है परिणाम ग़रीबी
कसम खाई है हर बार हम हटाएँगे ग़रीबी
जहाँ थी वहीं खड़ी है बेनाम ग़रीबी
जब जात और जनम दोनो ग़रीब हों
खूटे से बँधी गाय उपनाम ग़रीबी
प्यास और विश्वास के यान पर चढकर
लिख लेगी सारा स्वर्ग अपने नाम ग़रीबी!!!!!!
श्री शिव नारायण जौहरी 'विमल'
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