संशोधित कविता ( पिता के लिए कविता )
मेरे पिता
भाव शांत और ह्रदय सुकोमल
सदा विचार मग्न मुद्रा
शूर, साहसी तेज़ पुंज
आभा युक्त मुखमंडल
ऐसा है व्यक्तित्व पिता का !
अनुशासित जीवन
आदर्शों से ओतप्रोत
न्याय दान में निडर रहे हैं
मेरे न्यायधीश पिता !
स्वातन्त्र्य वीर सेनानी
छुआ छू त और
भेद भाव से दूर
सदा समभाव प्रणेता
रहे हमारे पूज्य पिताजी !
छोटे छोटे कामों से
भी कभी न झिझके
दौड़ समय के साथ
कष्टों का विषपान किया खुद
सबको सुख का अमृत पान
करा देने के खातिर !
जियो आत्म -- सम्मान सहित
पर सहनशील व्यवहार हमेशा
करो परिश्रम
अंधियारों से हार न मानो
मूल मंत्र हैं जिनके
ऐसे हैं वे पिता हमारे !
एक हाथ कानून और
और दूजे में साहित्य भिरूची है
दोनों में कर रहे
निरंतर ग्रन्थ प्रकाशन
एल एल ऍम
साहित्य -रत्न की
उपाधियों का मान रख रहे
शिक्षा की महत्ता दर्शा कर
स्वावलंबी होना सिखलाया !
मृदु --वचनों से आकर्षित कर
दुश्मन को भी दोस्त बनाया
सहज , सरल जीवन अपनाया
अबला को सबला रूप बताकर
नारी --शक्ति की महिमा जतलाई !
ऐसे प्रखंड , प्रबुद्ध बुद्धिशाली
दूरदर्शी पिता के आशीषों से
तृप्त हुई उनकी संतानें सारी
कहाँ तक इनके गुण गिनवाएं
ख्याति हर दिन बढती जाए
साया जब तक साथ रहेगा
बच्चों को सुख का अहसास रहेगा !!!!
मधु प्रधान (18-2-2013)
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