प्रवासी भारतीय
जे जहाज़ को पंछी नइयां
मोटर बंगला छोड़ लौट के कौन चराबें गैया
जे पश्चिम की चकाचौध कछु एसी मन खों भाई
डैनन पे उड़ाए कें लें गई भारत की तरुणाई
काय बिराने देस लग रए तोखों सरग समैया
छूट गए सब नाते रिश्ते तड़पत रह गयो भैया
पीर मताई की नई जानी झटको भिगो अचरा
बैना के नैना से झर-झर बहत रह गयो कजरा
अपनी सुघर मडैया काहे तोखों रास न आई
हाय हरी री हवा गाँव की काये नहीं सुहाई
देस पराए जाखें गढ़ रए हो सोने पे सोना
जा माटी पे जनमे तासों गढों न एक खिलोना
खबर लौटने की करके तुम लौटे नइ हरज़ाई
घूरन के दिन कबै फेरिहें मेरे राम गोसाईं
गए रहे तो कछु ऐसों तुम करतब उतें दिखाइयो
भारत के झंडे बिदेस में गाड़- गाड़ खे अइयो !!!!!!!!!!!
शिवनारायण जौहरी विमल
एच. आई जी. १३७/ ई ७
अरेरा कालोनी
भोपाल (भारत)
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