बुधवार, 10 अगस्त 2011

abhaagi bahu

अभागी बहू
ब्याह के समैया पे
सपने संजोय कैसे
तितली सी उड़त फिरि
समूचे आसमान में
समुंदर में जैसे
ज्वार भाटा सो आत रओ
सपान सच होत नइया
एसे उछाह के !
पीहर में आई तो
करमन में गडडे मिले
पाथरा ही पथरा !
एसी कछु गिरी गाज
असुअन में डूब गई
सिगरी उमरिया !
"बजरी' खो मिली रोज़
गारिन की सौगात
डायन ने खाए लाए
अपने मताई बाप
पीहर में जीं गई
अपनो ही अचरा !
फटी फटी आखन में
देख रही घूर-घूर
जैसे खा जाएगी
हंम सबको जिगरा !
मौत पे तनिक ज़ोर
होतउ तो नैइयाँ
वरना मर जाती तभई
धनी के समुहियाँ !
फटे जात कान सुनत
रोज़ की जे गरियाई !
बैठ गए घन धरती पे
घर के ही कौआ !
लूट लाई सबने मिल
सारी बजरिया !
चूल्‍हे में गयो दुलार
रोवत है मढ़ा द्वार
छूटो सिंघार प्यार
छूट गयो पलका !
धरती की सेज़ मिली
लुगडी एक कटी फटी
जूनो सो लहंगा
और हाथन में रह गए
झाडू और पौछा !
वाह! री दुनिया
औरत ही औरत ख़ान
खाबे को दौड़ रही
अपनोपन खड़ो खड़ो
आँसू टपकात जात
अभागी बहुरिया खों मिली
यह भीगी सौगात !!!
शिवनारायण ज़ोहरी "विमल"

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