शुक्रवार, 6 अगस्त 2010

जिजीविषा-------------ठहरा हुआ आसमाँ

ठहरा हुआ आसमाँ
ठीक सब कुछ वही है
हाँ । वही तो है
कुछ बदलता नहीं है
एक चिडिया ने वही अपना
चिरपिराहट का पुराना गीत
फिर गाया ।
ठहरा हुआ सा आसंमाँ
ठहरा हुआ यह पल
कि जैसे एक पहिया
कर्ण के रथ का
धरा में धँस गया हो।
खिलखिलाती जा रही सरिता
दहाडे मारता सागर
पूर्ववत ठहरे हुए हैं
और सारे राग सारे रंग
जैसे सो रहे हैं
लोरियों में भीग कर ।
हरी सी मखमली कोयल
गोद में लेटी हुई है
लाडले माँ के
वह प्रकृति भी
एक शाश्वत सत्य है
ऐसा गुमाँ होने लगा है।।।
शिवनारायण जौहरी विमल

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